आनुवंशिकता एवं विभिन्नताएँ
आनुवंशिकता (Heredity)
जीन्स का एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी
में निरंतर स्थानान्तरण तथा अभिव्यक्ति का अध्धयन आनुवंशिकता या वंशागति कहलाता हैं तथा जो लक्षण
एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थानांतरित होते हैं उन्हें वंशागत लक्षण कहते हैं |
आनुवंशिकी (Genetics) शब्द को ग्रीक भाषा के शब्द जेन जिसका अर्थ होता हैं ‘होना‘ या ‘वृद्धि करना‘ से विलियम बेट्सन ने 1905 ई० में बनाया | परन्तु आनुवंशिकी विज्ञान (Genetics)
का जनक आँस्ट्रिया के पादरी ‘ग्रेगर जॉन मेण्डल’ को कहा जाता हैं |
विभिन्नताएँ (Variations)
माता -पिता से वंशागत लक्षणों के संतान में जाने के बावजूद
संतान में कुछ लक्षण ऐसे होते हैं जो माता-पिता से एकदम भिन्न होते हैं , इन्हें विभिन्नताएँ कहा जाता
हैं अर्थात सजातीय सदस्यों में पाई जाने वाली असमानताओं को विभिन्नता कहा जाता हैं
|
विभिन्नताओं के प्रकार
विभिन्नताएँ 6 प्रकार की होती हैं जिन्हें मुख्यत: तीन
जोड़ियों में रखा गया हैं —
(1) जननिक या वंशागत विभिन्नताएँ ( germinal or
hereditary variations) – ये विभिन्नताएँ जनन कोशिकाओं अर्थात जननद्रव्य में होती हैं और एक
पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थानांतरित होती रहती हैं | ये वंशागत होती हैं | जैसे- बालों व नेत्रों का रंग |
(2) कायिक या वातावरणीय या उपार्जित विभिन्नताएँ (
somatic
or environmental or acquired variations) – ये विभिन्नताएँ मुख्यत: पर्यावरणीय दशाओं , जैसे – भोजन,
तापमान या किसी अन्य
वाह्य कारक के कारण होता हैं |ये
वंशागत नहीं होती हैं |
जैसे – त्वचा के रंग में अन्तर |
(3) विच्छिन्न विभिन्नताएँ (discontinuous
variations) – किसी भी जीव के शरीर
में होने वाले आकस्मिक परिवर्तन को विच्छिन्न विभिन्नता कहते हैं | ये संख्यात्मक या गुणात्मक होती हैं | संख्यात्मक विभिन्नता धनात्मक या ॠणात्मक हो सकती हैं जबकि गुणात्मक
विभिन्नता में नए लक्षण प्रदर्शित होते हैं |
(4) अविच्छिन्न विभिन्नताएँ (continuous
variations) – सजातीय जीवों में पीढ़ी
दर पीढ़ी पायी जाने छोटी- छोटी क्रमबद्ध विभिन्नताएँ जिनके द्वारा नए लक्षण प्रदर्शित होते हैं ,अविच्छिन्न विभिन्नताएँ कहलाती हैं |
(5) निश्चयात्मक विभिन्नताएँ (determinate variations) – जैव विकास में निरंतर पायी जाने विभिन्नताएँ, जो एक निश्चित दिशा में विकसित होती रहती हैं | निश्चयात्मक विभिन्नताएँ कहलाती हैं |ये लाभदायक या हानिकारक होती हैं |
(6) अनिश्चयात्मक विभिन्नताएँ (indeterminate variations) – किसी भी दिशा में होने वाली असीमित
विभिन्नताएँ , अनिश्चयात्मक विभिन्नताएँ कहलाती हैं |इनका कोई महत्व नही होता हैं |
विभिन्नताओं के कारण
विभिन्नताएँ वातवरणीय
प्रभाव से,
अंगों के उपयोग या
अनुपयोग अथवा जीन में परिवर्तन के फलस्वरूप होता हैं |
(1) वातवरणीय प्रभाव – प्रकाश , ताप ,पोषण , वायुदाब आदि के द्वारा जीव शरीर में होने वाला परिवर्तन | ये वंशागत नहीं होते हैं |
(2) जीन ढाचों में परिवर्तन – इसके कारण उत्पन्न विभिन्नताएँ वंशागत होती
हैं एवं इसके उपरांत जीन ढाचे बदल जाते हैं |
(क) लिंगी जनन –
इसके निम्न कारण हैं
(i) द्वैत जनकता (dual parentage) – पीढ़ी दर पीढ़ी माता-पिता के गुणसूत्रों के
मिश्रण के फलस्वरूप |
(ii) अर्द्धसूत्री विभाजन (meiosis) – कोशिका विभाजन के समय समजात गुणसूत्रों के
अनियमित बटवारा एवं विनिमय तथा निषेचन के समय युग्मकों के स्वतंत्र अप्व्युहन के
कारण नए जीन ढाचे का निर्माण |
(ख) उत्परिवर्तन (mutation)
– इसके निम्न कारण हैं
(i) जीन उत्परिवर्तन –
किसी लक्षण विशेष के
जीन की रासायनिक संरचना या गुणसूत्र पर इसकी स्थिति बदल जाती हैं |
(ii) गुणसूत्र उत्परिवर्तन – अर्द्धसूत्री विभाजन के समय त्रुटिओं जैसे – स्थानांतरण , उत्क्रमण , विलोपन ,आवृत्ति आदि के कारण गुणसूत्र की संरचना
में परिवर्तन |
(iii) गुणसूत्र समूह उत्परिवर्तन – गुणसूत्रों की संख्या बदल जाने से विभिन्नताएँ उत्पन्न होती हैं|
विभिन्नताओं का महत्त्व
विभिन्नताएँ जैव विकास
का आधार हैं |
लाभदायक विभिन्नताएँ पीढ़ी दर पीढ़ी वंशागत होती रहती
हैं जिसके फलस्वरूप नई जाति का विकास होता हैं |
आनुवंशिकता एवं
विभिन्नताएँ के विषय में अगर कोई तथ्य आपको समझ ना आ रहा हो तो आप निचे comment box में जरुर बताएं. और किसी जानकारी के लिए हमारे
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