एकलिंगी जीवों में नर तथा मादा
जनन अंग अलग - अलग जन्तुओं में होते हैं । नर तथा मादा में लिंग भेद होता है ।
एकलिंगी जीवों के लिंग भेद
प्रक्रिया के भेद में मैक्लंग ने लिंग निर्धारण का गुणसूत्रवाद दिया । इसके अनुसार
लिंग का निर्धारण गुणसूत्रों पर निर्भर करता है तथा इसकी वंशागति मेण्डेल के
नियमों के अनुसार होती है ।
लिंग गुणसूत्र का निर्धारण सिद्धान्त सी. ई. मैक्लंग ने
सन् 1902 में दिया था । इसके अनुसार प्राणियों में दो प्रकार के
गुणसूत्र पाये जाते हैं -
(1) समजात गुणसूत्र
(2) लैंगिक गुणसूत्र या एलोसोम
सभी जीवों में गुणसूत्रों की
संख्या निश्चित होती है , जिसे 2 X से प्रदर्शित करते हैं । इनमें से दो गुणसूत्र लैंगिक
गुणसूत्र होते हैं ।
लैंगिक गुणसूत्र दो प्रकार के
होते हैं - X तथा Y । कुछ जन्तुओं में एक लिंग में दोनो लैंगिक गुणसूत्र समान
होते हैं तथा दूसरे लिंग में लिंग गुणसूत्र असमान होते हैं।
लिंग निर्धारण की XY विधि :- इस विधि में मादा के दोनों
लैंगिक गुणसूत्र XX होते हैं तथा नर नर में एक लैंगिक गुणसूत्र X तथा दूसरा Y होता है। मादा में जब अण्डजनन
होता है , तब सभी अण्डाणुओं में एक अगुणित सैट दैहिक गुणसूत्र का तथा
एक X लैंगिक गुणसूत्र होता है (A + X) । इस प्रकार सारे अण्डाणु समान
होते हैं । अत: मादा को समयुग्मकी कहते हैं । इसके विपरीत नर में शुक्राणुजनन के
समय कुछ शुक्राणुओं में एक सैट दैहिक गुणसूत्रों का तथा Y गुणसूत्र (A + X or A +
Y) होते
हैं । इस प्रकार दो प्रकार के शुक्राणुओं का निर्माण होता है । लगभग 50% शुक्राणु A + X तथा 50% A
+ Y गुणसूत्रों
वाले होते हैं । अत: नर को विषमयुग्मजी कहते हैं ।
निषेचन के समय यदि A + Y शुक्राणु का समेकन अण्डाणु के
साथ होता है , तब नर संतान पैदा होती है । यदि अण्डाणु के समेकन A + X शुक्राणु के साथ होता है , तथा मादा सन्तान पैदा होती है ।
यह केवल संयोग है कि कौन से शुक्राणु का समेकन अण्डाणु के साथ हो । इसी के आधार पर
सन्तान लिंग निर्धारण होता है ।
लिंग निर्धारण की यह विधि
मनुष्य में पायी जाती है । स्त्रियों की गुणसूत्र संख्या 44 + XX होती है । पुरुषों की गुणसूत्र
संख्या 44 + XY होती है । इस प्रकार इस विधि के अनुसार सन्तानों में लिंग
निर्धारण के लिए पिता उत्तरदायी है ।
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